चलचित्र (द रीडर)
दो दिन हो गए देखे हुए उसे ....
एक स्त्री, अकेली स्त्री जो दिखती भी अकेली है और है भी ,कई सालों के बाद वह उसे देखता है अदालत में एक विद्यार्थी की तरह देखता है....फिर रोता है ,परेशान होता है क्षुब्ध होता है और तड़पता है बीच के कई साल गुजरते हैं वह उन बीच के सालों में कहां था इस बात का ज़वाब यही है वह उसे याद रहती है या नहीं इसका भी कोई ज़वाब नहीं लेकिन उसे वह याद रहती है इसका सुबूत है ...
वह किताबें और कविताएँ वह उसे बेतरह चाहा करता है कई सालों बाद वह उसे फिर कविताएँ सुनाता हैं रिकार्ड करके ...जेल में ! क्यों भेजता है इसका और भी कई बातों की तरह ज़वाब नहीं जैसे कोई किसी को क्यों प्यार करता है ।
भुला हुआ वह जब उसके सामने आता है तब उसे कुछ आभास का एक कण मिलता है और वह उस शर्म से निजात पाती है जिसके सामने आने से रोकने के लिए वह उम्रकैद भी स्वीकार कर लेती है यहीं से वह reader बनती है
किसी एक reader ने एक समय कविताओं की दुनिया खोली थी उसी दुनिया में वह प्रवेश करती है फिर कौन इस बात को समझेगा की एक चीज पा लेने के बाद सारी दुनिया खाक नजर आती है फिर एक दिन उन्हीं किताबों पर चढ़कर वह दुनिया छोड़ती है जिसके शाने पर सर रखकर उसने नींद ली होगी 'उन' दोनों की आंखें न जाने कितनी बातें करती रहीं दर्शक शायद ही समझ पाये...
The reader बंद कमरे से शुरू होती हैं लोगों की नजरों में शायद वह श्लील न हो पर अंत में इस परिभाषा से परिचित होंगे। एक जगह पर नायक से पूछा जाता है उसके साथ क्या समबन्ध था वह दो घड़ी रुक जाता है कुछ बातों के उत्तर जो नहीं होते...
"इश्क़ करता है तो फिर इश्क़ की तौहीन न कर
या तो बेहोश न हो हो तो न फिर होश में आ "
" The reader "
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?