अखिलेश ने मान ली चाचा शिवपाल की बात?
उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में समाजवादी पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी है। पिछली बार मेयर के 16 पदों पर पार्टी को एक भी सीटें नहीं मिली थीं। इस बार चाचा शिवपाल और अखिलेश के दम पर पार्टी को सीटें जीतने की उम्मीद है।
उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा) नगर निकाय चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को कड़ी चुनौती देने के लिए अपने परंपरागत मुस्लिम और यादव मतों के साथ ही विस्तार की रणनीति पर कार्य करते हुए दलितों और अन्य पिछड़ी जातियों को साधने की फिर से कोशिश करती दिख रही है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले राज्य में नगर निकाय चुनाव राजनीतिक दलों के जनाधार परखने की एक खास कसौटी है और 2024 के लक्ष्य को ही ध्यान में रखते हुए राजनीतिक दल अपनी रणनीति पर काम कर रहे हैं।
इस नए राजनीतिक समीकरण में दलितों के उभरते नेता और आजाद समाज पार्टी (एएसपी) के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। दिसंबर में अखिलेश ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में यदि सपा सत्ता में आयी तो तीन महीने के अंदर जातीय जनगणना कराएगी। पिछले वर्ष सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उनके प्रतिनिधित्व वाली मैनपुरी संसदीय सीट पर उपचुनाव में सभी मतभेदों को भुलाकर पूर्व मंत्री शिवपाल सिंह यादव अपने भतीजे अखिलेश यादव के साथ मिलकर सत्तारूढ़ दल को चुनौती देने को खड़े हुए तो सपा को भी अपनी ताकत में इजाफा होने का अहसास हुआ। इस उपचुनाव में अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव की जीत ने इस पर मुहर भी लगाई।
सपा 2017 के नगर निकाय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी और 16 महापौर सीटों में से किसी पर भी खाता नहीं खोल सकी थी। जहां भाजपा ने नगर निगमों के महापौर की 14 सीटें जीती थीं, वहीं बसपा को दो सीटें मिली थीं। पिछले चुनावों से उलट अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव इस बार साथ हैं और पार्टी उम्मीदवारों के लिए प्रचार कर रहे हैं। सपा के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल सिंह यादव ने कहा, "हम (अखिलेश और शिवपाल) पार्टी द्वारा बनाई गई योजना के अनुसार एक साथ प्रचार करेंगे।"
कश्यप समाजवादी पार्टी के पिछड़ा मोर्चा प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष हैं और उन्होंने जातीय जनगणना के मामले को लेकर प्रदेश व्यापी दौरा भी किया था। दूसरी तरफ सपा मायावती के कोर दलित वोट बैंक में भी सेंध लगाने की कोशिश कर रही है और आक्रामक रूप से खुद को इस समुदाय के हमदर्द के रूप में दिखा रही है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि बसपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 22 फीसदी से ज्यादा मत हासिल करते हुए राज्य की 403 सीटों में से 19 पर जीत हासिल की थी, जबकि 2022 में उसके मतों का ग्राफ नीचे गिरकर 12 प्रतिशत से कुछ अधिक ही रहा और सिर्फ एक सीट पर जीत मिली।
पिछले रिकॉर्ड को देखें तो महापौर और अध्यक्ष के कुल 652 पदों पर सपा के उम्मीदवारों की 51.19 फीसदी सीटों पर, बसपा की 73.35 फीसदी सीटों पर और 86.97 फीसदी सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई है। भाजपा ने 184 सीटों में बहुमत हासिल किया और उसके उम्मीदवार 38.94 सीटों पर हारे भी, जबकि भाजपा के पास स्टार प्रचारक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और केशव प्रसाद मौर्य हैं और उन्होंने "घर-घर दस्तक" देने का फैसला किया है। सपा अपने पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव पर निर्भर होगी।
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